उड़ान || Vashisth Poetry|| Motivational Poem by Bhushan Vashisth

 

"उड़ान"

By Bhushan Vashisth

Instagram ID - @vashisthpoetry





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"उड़ान"


"एक नन्हा पंछी, गिरा जमीं पर,
आसमां को निहार रहा था,
ज़ख्मी पंखे, लहू में लथपथ,
कतरा कतरा कांप रहा था।

पंखे घायल हो भले ही,
गुरूर तेरा भी तोडा है,
आंधियों से टकराकर मैंने,
सीना आसमां का चीरा है।

यूंही ना मैं खड़ा हुआ था,
ना यूंही जिद्द पर अड़ा हुआ था,
गिर गिरकर था उड़ना सिखा,
गिर गिरकर ही मैं बड़ा हुआ था।

रूकने वाला मैं प्रवाह नहीं,
उठ खड़ा हुंगा फिर एक दिन,
फैला पंखे उड़ जाऊंगा,
मैं लौटकर वापस आऊंगा,
मैं लौटकर वापस आऊंगा।।"

~भूषण वशिष्ठ







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Jai Hind.


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