"कहानी खुद की" - A Motivational Poem in Hindi by Bhushan Vashisth || Vashisth Poetry ||

 

"कहानी खुद की"- Motivational-Poem-in-Hindi

By Bhushan Vashisth

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"कहानी खुद की"- Motivational-Poem-in-Hindi By Bhushan Vashisth , vashisthpoetry , bhushanvashisthquotes , motivationalpoem , motivationalpoetry , motivationalquotes , poetry , poem , shyari, जिंदगी के इन पन्नों को, कुछ अलग अंदाज में भरते हैं, कहानी लिखकर खुद की, खुद ही उसे पढ़ते हैं।  बहुत हुआ पूछना और किसी से, कि बार-बार क्यों हम गिरते हैं, चलो लिखकर किरदार खुद के, खुद ही उन्हें परखते हैं।  जो उगने लगे बीज जीत के, उन बादलों सा बरसते हैं, लिखते हैं एक इतिहास नया, चलो खुद ही खुद को बदलते हैं   फिर एक बार जंग एक, खुद ही खुद से लड़ते हैं,  करते हैं खत्म हर बात वो हम, जिससे खुद ही हम डरते हैं।  करते हैं हर दरिया को पार, हवा सा बहता चलते हैं, पड़ने देते हैं मार जिंदगी की, फिर सोना बन निखरते हैं।  बीत चुके साल कई, अब दौर अपना लिखते हैं, लिखते हैं कहानी खुद ही खुद की, फिर खुद ही उसे पढ़ते हैं।  ~भूषण वशिष्ठ
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"कहानी खुद की"


जिंदगी के इन पन्नों को,
कुछ अलग अंदाज में भरते हैं,
कहानी लिखकर खुद की,
खुद ही उसे पढ़ते हैं।

बहुत हुआ पूछना और किसी से,
कि बार-बार क्यों हम गिरते हैं,
चलो लिखकर किरदार खुद के,
खुद ही उन्हें परखते हैं।

जो उगने लगे बीज जीत के,
उन बादलों सा बरसते हैं,
लिखते हैं एक इतिहास नया,
चलो खुद ही खुद को बदलते हैं

 फिर एक बार जंग एक,
खुद ही खुद से लड़ते हैं,
 करते हैं खत्म हर बात वो हम,
जिससे खुद ही हम डरते हैं।

करते हैं हर दरिया को पार,
हवा सा बहता चलते हैं,
पड़ने देते हैं मार जिंदगी की,
फिर सोना बन निखरते हैं।

बीत चुके साल कई,
अब दौर अपना लिखते हैं,
लिखते हैं कहानी खुद ही खुद की,
फिर खुद ही उसे पढ़ते हैं।

~भूषण वशिष्ठ


"कहानी खुद की"- Motivational-Poem-in-Hindi By Bhushan Vashisth ,vashisthpoetry ,जिंदगी के इन पन्नों को, कुछ अलग अंदाज में भरते हैं, कहानी लिखकर खुद की, खुद ही उसे पढ़ते हैं।  बहुत हुआ पूछना और किसी से, कि बार-बार क्यों हम गिरते हैं, चलो लिखकर किरदार खुद के, खुद ही उन्हें परखते हैं।  जो उगने लगे बीज जीत के, उन बादलों सा बरसते हैं, लिखते हैं एक इतिहास नया, चलो खुद ही खुद को बदलते हैं   फिर एक बार जंग एक, खुद ही खुद से लड़ते हैं,  करते हैं खत्म हर बात वो हम, जिससे खुद ही हम डरते हैं।  करते हैं हर दरिया को पार, हवा सा बहता चलते हैं, पड़ने देते हैं मार जिंदगी की, फिर सोना बन निखरते हैं।  बीत चुके साल कई, अब दौर अपना लिखते हैं, लिखते हैं कहानी खुद ही खुद की, फिर खुद ही उसे पढ़ते हैं।  ~भूषण वशिष्ठ , Bhushan Vashisth , Motivational poem , motivationalquotes ,



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